टीबी उन्मूलन के लिए सामुदायिक बैठकों की ली जा रही है मदद

फिरोजाबाद :–

टीबी उन्मूलन के लिए सामुदायिक बैठकों की ली जा रही है मदद
उच्च जोखिम क्षेत्र में पहुंच कर डीटीओ ने सामाजिक प्रभाव वाले लोगों के साथ की बैठक
सक्रिय क्षय रोगी खोजी अभियान के दौरान खोजे जा रहे हैं नये टीबी मरीज


राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के तहत देश को वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त बनाने के लिए सामुदायिक सहभागिता अनिवार्य है । इसी उद्देश्य से जिले में शुरू हुए सक्रिय क्षय रोगी खोजी अभियान (एसीएफ कैंपेन) के दौरान सामुदायिक बैठकें भी की जा रही हैं। इसी कड़ी में उच्च जोखिम क्षेत्र रामनगर और नगलाबारी में शुक्रवार को आयोजित बैठक में जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ ब्रजमोहन खुद पहुंचे । उन्होंने समाज में प्रभाव रखने वाले लोगों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों को टीबी के बारे में विस्तार से जानकारी दी और इसके उन्मूलन में सहयोग की अपेक्षा की ।

 जिला क्षय रोग अधिकारी ने बताया कि क्षय रोग माइक्रोबैक्टीरिया, ट्यूबरक्लोसिस नामक जीवाणु के संक्रमण के कारण होता है। यह दो प्रकार का होता है । संक्रामक टीबी को पल्मोनरी टीबी या फेफड़ो की टीबी के तौर पर जानते हैं । वहीं गैर संक्रामक टीबी को एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी कहते हैं और यह बाल एवं नाखून छोड़ कर शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है । उन्होंने बताया कि नये टीबी मरीजों को खोजने के लिए जिले की 20 प्रतिशत आबादी के बीच स्क्रीनिंग अभियान चलाया जा रहा है। करीब 6.9 लाख लोगों के बीच पहुंच कर संभावित टीबी रोगी खोजे जाएंगे और उनकी जांच करवा कर बीमारी मिलने पर इलाज शुरू करवाया जाएगा । विगत 23 नवम्बर से शुरू हुआ यह अभियान पांच दिसम्बर तक चलेगा ।  

डीटीओ ने कहा कि पल्मोनरी टीबी (फेफड़ों की टीबी)  के मरीज के खांसने, छींकने और  थूकने पर बैक्टीरिया एरोसॉल के रूप में वातावरण में फैल जाता है, जब पास खड़ा एक स्वस्थ व्यक्ति सांस  लेता है तो वह सांस के साथ उसके फेफड़ों में पहुंच जाता है और  उस व्यक्ति को भी संक्रमित कर देता है । जब तक संक्रमित व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता अच्छी रहती है तब तक बैक्टीरिया निष्क्रिय रहता, लेकिन  प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर व्यक्ति में रोग के लक्षण दिखाई देने लगते हैं । अगर फेफड़ों की टीबी से संक्रमित व्यक्ति की समय से पहचान एवं उपचार न हो तो वह एक वर्ष में 10 से 15 लोगों को टीबी संक्रमित कर सकता है । समय से पहचान और इलाज शुरू होने पर तीन सप्ताह बाद टीबी मरीज से संक्रमण का खतरा नहीं रह जाता है ।

उन्होंने बताया  कि क्षय रोग के निदान के लिए सरकारी प्रावधानों के तहत बलगम जाँच, उपचार के साथ (पोषण भत्ता) हेतु धनराशि 500 रुपये प्रत्येक माह, सीबीनॉट/टूनॉट मशीन द्वारा समस्त मरीजों की बलगम जाँच और परामर्श  की सुविधा उपलब्ध है । टीबी का उपचार पूरा होने के बाद मरीज   पूरी तरह से स्वस्थ हो जाता है। टीबी का उपचार बीच में नहीं छोड़ना चाहिए। इससे  ड्रग रेसिस्टेंड टीबी (डीआर टीबी) होने का खतरा रहता है जो सामान्य टीबी से ज़्यादा  जटिल है और  इसका उपचार भी लम्बा चलता है। ड्रग सेंसिटिव टीबी (डीएसटीबी) जहां छह महीने के उपचार में ठीक हो जाता है वहीं डीआर टीबी के इलाज में डेढ़ से दो साल का समय लग जाता है।


जिला कार्यक्रम समन्वयक आस्था तोमर ने बताया कि जिले में जनवरी से अब तक 7200 टीबी रोगी  खोजे गये,   जिनमें से 4500 उपचाराधीन हैं। 2500 मरीज पूरी तरह स्वस्थ हो चुके हैं । भेदभाव के डर से टीबी मरीज बीमारी को छिपाते हैं जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है । भेदभाव और कलंक की दुर्भावना को दरकिनार कर अगर टीबी मरीजों को खोजने और उनका इलाज करवाने में समुदाय सहयोग करे तो इस बीमारी का प्रसार रोका जा सकता है । उन्होंने बताया कि एसीएफ अभियान के पहले दिन 245  टीम ने 49 सुपरवाइजर के संयोगात्मक पर्यवेक्षण में 200 संभावित टीबी मरीजों की पहचान की है। इन सभी की जांच कराई जा रही है।

बैठक  में प्रतिभागी पार्षद पति भगवान सिंह झा  ने बताया कि उन्हें पहली बार बैठक में आने के कारण यह जानकारी मिली है कि अगर एक टीबी मरीज  इलाज नहीं कराता है, तो वह एक साल में दस से पंद्रह लोगों को टीबी मरीज बना सकता है । टीबी का इलाज छोड़ने पर गंभीर टीबी हो जाती है । अब वह इस जानकारी  को अपने क्षेत्र  की जनता तक पहुंचाने में विभाग का सहयोग करेंगे, ताकि उनके क्षेत्र में कोई भी टीबी की बीमारी से पीड़ित ना हो । वह आसपास के लोगों को भी जागरूक करेंगे । लोगों के बीच यह संदेश देंगे कि  समय से जांच और इलाज कराकर  टीबी से मुक्त हो सकते हैं । 
 
मिले थे 68 नये मरीज
डीटीओ ने बताया कि वर्ष 2023 में 3000 संभावित क्षय रोगियों की जांच की गई थी,  जिनमें से 68  नए टीबी मरीज मिले ।अभियान के दौरान मिले सभी टीबी मरीजों का उपचार पूर्ण हो गया है और वह पूरी तरह स्वस्थ हैं।

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