अलीगढ़:–
लब्ज़ो की मतलबपरस्ती की दिखावट।
उस पर मुखुटों की बनावट।
चरित्र की हरेक क्षण होती गिरावट।
भावनाओं की रंग बदलती तिजारत।
चित्र को संवारने की तेरी कला।
न जाने,
नये नये रंगों से तूने कितनों को छला।
हर बार तू
एक नई मतलबपरस्ती लेकर चला।
तेरा हुनर कमल था,
या थी कोई बला।
कभी सोचा है,
क्या यहां कर्मों के चक्र से कोई बचा है।
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