अलीगढ़ :–
सुबहों,शाम बदल जाएंगें।
बीते बरसों के “नाम” बदल जाऐंगें ।
यादों के कारवे - ए - अस्क बदल जाएंगे।
याद भी,
जो रखना चाहो तो।
वक्त - ए- जज्बात , बदल जाऐंगें।
कोशिश भी बेमानी होगी।
कुछ मन्जिलें मुसाफिर बदल जाऐंगें।
होगा दुनिया जहां- ए- नूर हर पल में ।
बस कुछ वक्तं - ए - किरदार बदल जाएंगें।
न समझाने की दरकार,
न समझने की फरियाद ।
बस कुछ,
खामोशियों से बरसो बदल जाएंगे ।
न तलाश करना बीतें वक्त की।
क्योंकि “आइने” टूटने की कगार पर हैं।
उसके बिखरे - टूटे हिस्सें,
कब तक हाथों में जख्मों के साथ रह पाऐंगें ।
कभी तो वो भी हाथों से नीचे गिर जाएंगे ।
सम्भाल कर रखना " आइने " को अपने ,
वरना अपने साथ,
न जाने कितनी यादें ले जाएंगे।
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