शिकवा - शिकायत – डॉ कंचन जैन स्वर्णा

अलीगढ़ :–   



चलो एक दिन के लिए,

 कारवां बदलते हैं।

भूलकर शिकवे-शिकायतों को,

कुछ दूर शमशान तक  साथ चलते हैं।

अगर बाद उसके भी,

कुछ याद रहा,

तुम्हें या हमें।

तो फिर दोस्ती या दुश्मनी की सोचते हैं।

एक पल में विदा, दुनिया से।

तुम भी,हम भी।

फिर क्यों सोचकर, बुरा।

एक-दूसरे का।

क्यों रूह को मैला करते हैं।

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