तजुर्बे के मोती – डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"

अलीगढ़ :–


बदल रहा है, हरेक

चेहरा भी।

उतर रहा है, 

चेहरे पर लगा,

 मुखौटा भी।

बदल रहा है, वक्त।

बीन रहा हूं,

 तजुर्बे के मोती भी।

पल भर में बदल जाती हैं,

यहां नीयतें भी।

नजर आती है,

 सूरत को ढकती सीरतें भी।

कैसे यकीं कर लूं,

तेरे लफ्जों की मिठास पर ही,

तू अभी 

ज़माने को बेचकर चला है,

इसी दरख़्त पर ही।

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