मोर की अंतिम इच्छा “जीव दया” डॉ कंचन जैन स्वर्णा

अलीगढ़:–

शिकार के प्रति अपने प्रेम के लिए जाने जाने वाले राजा भानु  बहुत ही अभियानी  थे। एक हरे भरे जंगल की गहराई में, उसके तीर ने एक शानदार  मोर को घायल कर दि


या। जैसे ही राजा मारने के लिए तैयार होकर पास आया।

 मोर ने स्पष्ट स्वर में कहा, "महाराज, मुझे मारने  से पहले, मेरी एक अन्तिम इच्छा पूरी करें। मुझे आखिरी बार उड़ने की अनुमति दें।"

राजा भानु आश्चर्यचकित होकर सहमत हो गया। मोर पेड़ों से ऊपर उड़ गया, और एक विशाल बंजर भूमि दिखाई दी। 

 उसने कहा, राजन आप देख रहे हैं। "अपने निरंतर शिकार के कारण हुए विनाश को देख पा रहे हैं । जल्द ही, आपके राज्य में कोई सुंदरता और आकर्षण नहीं बचेगा।"

राजा ने लज्जित नजरों से अपने कुकत्यों को बंजर परिदृश्य में प्रतिबिंबित होते देखा। उसने हाथों से धनुष नीचे कर लिया। "आप सही कह रहे हैं।," उसने कबूल किया। "मैं शिकार के रोमांच से अंधा हो गया हूं।" मोर उसकी फैली हुई भुजा पर उतरा। "एक और रास्ता है, महाराज," वह चिल्लाया। 

"अपने वन्यजीवों की रक्षा करो, और वे तुम्हारी भूमि की रक्षा करेंगे।"

उस दिन से राजा भानु  वन्य जीवों के संरक्षक बन गये। उन्होंने अपने राज्य में शिकार पर प्रतिबंध लगाया और जीव रक्षा की  प्रथाओं को बढ़ावा दिया। जिससे राज्य फला-फूला, प्रकृति के साथ सामंजस्य की सच्ची शक्ति का प्रमाण संपूर्ण मानव जाति को प्राप्त हुआ। यह सब संभव हुआ एक बुद्धिमान मोर की अंतिम इच्छा के कारण।

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