मानवीय गुण ही मानवता का परिचय- डॉ कंचन जैन

 अलीगढ़ :–

धरती पर सभी  सजीवों को जीवित रहने का अधिकार है, लेकिन कभी-कभी हम जानवरों के प्रति क्रूर हो जाते हैं। हमें यह समझना होगा कि जानवर बोल नहीं सकते लेकिन उनमें भी जीवन है। महात्मा गांधी ने ठीक ही कहा था कि "राष्ट्र की महानता इस बात से आंकी जाती है कि वह अपने जानवरों के साथ कैसा व्यवहार करता है"। भारत में उत्पन्न होने वाली परंपराओं ने, पशु कल्याण को एक महत्वपूर्ण या मौलिक अवधारणा के रूप में बढ़ावा दिया है, यहां तक ​​कि शाकाहार को बढ़ावा दिया है। जैसे कि  बौद्ध धर्म , जैन धर्म , हिंदू धर्म और यहूदी धर्म कई रूढ़िवादी यहूदी आज भी चमड़ा नहीं पहनते हैं।इंसानों की तरह जानवरों द्वारा किसी की पीड़ा को महसूस करने की क्षमता पशु पक्षियों को प्राप्त है।

लियोनार्डो दा विंची , जिन्होंने एक बार पिंजरे में बंद पक्षियों को आज़ाद करने के लिए खरीदा था, जानवरों के प्रति क्रूरता के बारे में चिंतित थे। उनकी नोटबुक में इस बात पर उनका गुस्सा भी दर्ज है कि इंसानों ने वध के लिए जानवरों को पालने के लिए अपने प्रभुत्व का इस्तेमाल किया। 

समकालीन दार्शनिक निगेल वारबर्टन के अनुसार , अधिकांश मानव इतिहास में प्रमुख दृष्टिकोण यह रहा है कि जानवर इंसानों के लिए हैं, जैसा वे उचित समझें। 

पशु क्रूरता के प्रति सख्त कानून हैं परन्तु बाबजूद इसके पशुओं का शोषण चरम पर है। हमारा समाज नवाचार तो चाहता है। मगर मानवीय गुणों को ताक पर रख रहा है। अपने स्वार्थ और स्वाद के लिए नित्य प्रकृति के अंश को खत्म कर रहा है। हम मानव हैं और मानवीय गुण हमारी पहचान होनी चाहिए न कि हमारे अन्दर किसी पशु पक्षी को कष्ट देने की


भावना।

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