अलीगढ़-
डॉ कंचन जैन "स्वर्णा" की कलम से
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सच्चाई की कलम,
हर पन्ने पर, न्याय मांग रही है।
सत्यता को थामे,
रस्ते नाप रही है।
आज सच्चाई शर्मशार है।
अपने आप पर।
कि
किस गली में वो,
न्याय तलाश रही है।
रो रहा है, न्याय भी
पन्नो से लिपटकर।
फिर सत्यता झुक रही,
घुटनों पर।
सच्चाई अपना हक चिल्ला चिल्ला कर मांग रही।
और झूठों की कलम,
उसे हंसकर निहार रही।
विचलित है सत्य,
विचित्र है तर्क,
मगर झूठ आज यक्ष है।
पन्ने भी शांत है,
कलम भी हताश है।
आज, सच्चाई शर्मशार है।
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