अलीगढ़ :–
इंसान में से इंसानियत खो गई है,
"स्वार्थ" की भावना जो हावी हो गई है।
जिस पेड़ पर बैठा उसी को काट रहा है,
इन्सान अब स्वार्थ का समन्दर जो हो गया है।
ढूंढता रहता है, "स्वार्थ सिद्धि" के नए नए उपाय,
अब इन्सान में कहां इन्सानियत ,
ये खुद सृजनकर्ता ढूंढ रहा है।
भावनाएं तो सब विद्यमान थीं,
पता नहीं,
कहां बेचकर इन्सान स्वार्थ खरीद रहा है।
एक इन्सान ढूंढ रहा है,
निस्वार्थवान इन्सान को।
बस "निस्वार्थ" क्या है, ये नहीं बता रहा है।
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