यथार्थ – डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"

अलीगढ़ :–


"विश्वास" ही

भावनाओं और शब्दों के बीच रेखा है।

ढूंढती

तक़दीर की जीवन रेखा है।

पत्थर में भी,

प्राण बसते हैं,

यही विश्वास की,

आन्तरिक परिभाषा है।

आन्तरिक से उत्पन्न,

बाह्य की

ज्ञान और अज्ञान के बीच की रेखा है।

शब्दों की जलेबी की चादर ओढ़े,

भावनाओं की आंधी में।

बहते चक्षुओं के नीर में,

छलते विश्वास में,

असंतुलित विचार में,

अशांत नजरों में,

लड़खड़ाते कदमों में।

ईश्वर नहीं मिला करते।

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