शब्द और भावना – डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"

अलीगढ़ :–


यह जो,

 शब्द और भावनाओं की तकरार है।

किसी विद्रोह  या अंत की,

 शुरुआत है।

बदनियत,

 शब्द और भावनाओं के मेल में,

फस जाता है,

 किरदार ।

साजिशों के खेल में।

बदलता है, 

मंजर।

कुछ वक्त के फेर में।

लौट आती है, 

कश्ती।

फिर उसी गेल में।

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