अहंकार और मिट्टी – डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"

अलीगढ़ :–


तेज बा़रिश में,

भावनाओं की मिट्टी बह रही है।

हर अपने,

 कहने वाले से मिट्टी अलग हो रही है।

आवाज भी तेज है, तूफान की।

मिट्टी भी बह कर रास्ता दे रही है।

ढह गया,

हर अहंकार रूठने मनाने वालों का,

आज मिट्टी,

 हर अंहकारी पेड़ की जड़ से अलग हो गई।

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