जीवन की किताब – डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"

अलीगढ़ :–


किताब नहीं बदल रही।

बस कुछ पन्ने,

 पुराने हो गए हैं । 

कुछ की मरम्मत हो रही है ।

कुछ फट कर किताब से,

 अलग हो गए हैं ।

नाम आज भी,

 किताब का वही है ,

बस कुछ पढ़ने वाले, नये ।

और

कुछ पढ़कर फैंकने वाले

अलग हो गए हैं ।

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