स्वाभिमान की कलम – डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"


अलीगढ़ :–

स्वाभिमान की कलम,

 टूट जाती है।

चन्द मुस्कुराते शब्दों की,

 बाढ़  में ।

बह जातीं हैं , भावनाओं की कश्ती।

कुछ वक्त के साये में ।

तूफान की रफ्तार से,

 भागती दौड़ती यादें ।

बह जाती है,

चक्षुओं के नीर में ।

लौट आती है , ज़िन्दगी।

फिर कलम के तीर में ।

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