अलीगढ़ :–
खतों के आने जाने के,
सिलसिले खत्म हो गए।
कदम जो बढ़ते थे,
एक दूसरे को रूठने मनाने को,
आज।
वो रास्ते से वापस हो गए।
अब दरवाजे की कुंडिया बजती नहीं,
अब हर गांव शहर हो गए।
ऊंची इमारतों में,
दिल छोटे हो गए।
एक दरवाजे के बाहर खड़ा,
दूसरा दरवाजे के भीतर इंतजार में खड़ा।
अब कोई दरवाजे पर,
आता नहीं,
अब कोई दरवाजा खोलकर,
देखता भी नहीं।
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