उदारता का कार्य डॉ कंचन जैन स्वर्णा

अलीगढ़ :– 


मुरारी एक युवा सैनिक था । वह सर्दी  की ठंडी सड़कों पर गश्त करता था। उसने एक कांपते हुए  भिखारी को देखा, जिसके शरीर पर बमुश्किल कपड़े थे। मुरारी से उसकी हालत देखी नहीं गई। मुरारी  ने  अपने सैन्य लबादे को अपनी तलवार से  आधा काट दिया, और एक टुकड़ा भिखारी को दे दिया। उस रात, मुरारी को ईश्वर  का सपना आया, जो उसके आधे लबादे में लिपटा हुआ था। जो उसने भिखारी को दिया था।  ईश्वर  ने कहा, "मुरारी , तुमने मुझे कपड़े पहनाए।" मनुष्यता का प्रथम धर्म उदारता है और तुम बहुत उदार हो।

मुरारी  जाग गया, और आश्चर्यचकित हो गया । उसने अपना लबादा पूरा पाया! मुरारी ने महसूस किया कि विभाजित होने पर भी उसकी दयालुता का कार्य अत्यधिक मूल्यवान है। मुरारी  ने बाद में सेना छोड़ दी, और खुद को ईश्वर को समर्पित कर दिया और वह अपनी करुणा के लिए जाने गए।

 उदारता का एक छोटा सा कार्य भी गहरा प्रभाव डाल सकता है। हम कभी नहीं जानते कि हमारी दयालुता दूसरों को कैसे प्रभावित कर सकती है, और कभी-कभी, जो हमारे पास है उसे देने से जो हमारे पास है वह मजबूत हो जाता है।

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