विश्वास – डॉ कंचन जैन

अलीगढ़ :–



संसार के दीए में,

विश्वास की बाती जल रही थी,

वक्त के तेल से।

स्वार्थ की हवा चल रही थी, अपने जोर से,

अफसोस,

वक्त मिल गया, स्वार्थ से।

दिया कांप गया शोर से,

विश्वास की बाती गिर कर बुझ गई ज़मीन पे,

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