अलीगढ़ :–
तुझे तेरे ही चश्मे से देख रहा हूं,
रोज एक नया
तुझमें किरदार देख रहा हूं।
कर्मों की चादर में,
रोज बुनते षड्यंत्र तूझे देख रहा हूं,
नए-नए रंग तेरे व्यवहार में देख रहा हूं।
फायदे के लिए इस्तेमाल करते तेरे शब्दों का,
नजारा भी देख रहा हूं।
मैं पल-पल तेरे साथ साए सा चलता हूं,
और तूझे हर अच्छे बुरे में देख रहा हूं।
नियत बदल जाती है, तेरी।
लाभ-हानि देखकर,
मैं तुझे तेरे लाभ के लिए,
कर्मों की श्रृंखला भुलाते देख रहा हूं।
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