बंदर ने दी शिक्षा – डॉ कंचन जैन

अलीगढ़ :–

 


बहुत पुराने समय की बात है।एक दिन एक शिकारी कुछ पक्षियों को बेच रहा था। तब एक सेठ के बालक ने उसे देखा और कहा- ऐ शिकारी! तुम्हारे पास बंदर नहीं तब शिकारी बोला जी नहीं है। फिर सेठ का बालक बोला- अच्छा! अगर तुम मेरे लिए एक बंदर ले आओगे तो मैं पिताजी से तुम्हें अच्छे दाम दिला दूंगा  । शिकारी ने लालचवश हां कर दी और बंदर की तलाश शुरू कर दी। उस दिन उसे कोई बंदर दिखाई नहीं पड़ रहा था।  फिर अचानक उसकी दृष्टि एक शाखा पर गई । जहां एक बंदर बैठा था फिर क्या था।  शिकारी ने जाल बिछाया और कुछ खाने की चीजें उस पर रख दीं । बंदर की दृष्टि जैसे ही खाने की चीजों पर पड़ी।  वह पेड़ की डाल से नीचे उतरा और खाने लगा। तभी शिकारी ने झट से जाल खींच लिया और बंदर जाल में फस गया। शिकारी जाल सहित बंदर को ले जाने लगा । तब बंदर ने शिकारी से कहा-  कि मैं तुम्हें एक शिक्षा देता हूं।  “कभी किसी की बातों पर आंख मूंदकर विश्वास मत करना।”  

शिकारी ने कहा-  हां हां ठीक है।  उसने बंदर की बात को ठीक से नहीं सुना। और अनसुना कर दिया । क्योंकि वह तो सिर्फ उसे मिलने वाले धन के स्वप्न देख रहा था।  जब वह बंदर को लेकर थोड़ी और दूर चला।  तब बंदर ने कहा- अब तुमने मुझे पकड़ लिया है।  एक काम करो।  मेरे पास थोड़ा सा स्वर्ण है,  उसे भी ले लो। वह पेड़ पर लटका है। यहां तो वह बेकार ही पड़ा रहेगा। चलो मैं तुम्हें पेड़ से उतारकर दे देता हूं। 

शिकारी का लालच जाग गया और उसने बिना विचार किए बंदर को जाल से निकाल दिया।  और पूछा कहां है? चढ़ो पेड़ पर उतारो। स्वर्ण लाकर  दो शिकारी बंदर को बहुत ही लालच की नजर से देख रहा था। बंदर बिना इधर-उधर देखें तुरंत मौका देख कर झट से पेड़ की एक ऊंची शाखा पर चढ़ गया  और बोला तुम मूर्ख हो शिकारी! तुम बहुत मूर्ख हो। मैंने कहा था- कि किसी की बातों पर आंख मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए।  स्वर्ण एक कीमती धातु है।  वह मेरे पास कहां से आई । तुमने एक बार भी विचार नहीं किया और लालच के मारे तुमने मुझे जाल से बाहर भी निकाल दिया।  तुम मेरी दी हुई शिक्षा भूल गए। कहकर बंदर शिकारी की नजरों से ओझल हो गया और शिकारी अपना सा मुंह लेकर वापस आ गया।

शिक्षा - “किसी की बातों पर आंख मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए।”

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