अलीगढ़ :–
सादगी ही सराहनीय थी,
पता नहीं,
ये ख्वाहिशों के रंग,
कहां से आ गए।
उम्र की खाली जेबों में,
तिजा़रतों के सिक्के कहां से आ गए।
अ़मीर बनकर,
तू जब से चला है,
खो गया है,
इल्म तेरा।
या शहर के
किसी मोड़ पर।
तू जानबूझकर,
छोड़ आया है।
ये होशियारी की तालीम,
न जाने कहां से तू ले आया है।
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