कलम की भावनाएं – डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"

अलीगढ़ :–


न जाने,

 कौन सी भावनाएं जहन में थी।

न जाने,

कौन सी, 

हसरतें  वहम में थीं।

कलम स्याही बिखेर रही थी,

हर पन्ने पर,

कभी भूत, 

कभी भविष्य, 

कभी वर्तमान।

कभी कुछ सजा रही थी,

 कभी कुछ मिटा रही थी।

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