अलीगढ़ :–
यूं जो रोज तू सादगी
लेकर चलता है,
ऊपरवाले का नूर है।
मगर
ये दौर और है।
यहां हर दवा की शीशी में जहर है।
हर लफ्ज़ में तिजा़रतों का शहर है।
डूब जाएगा,
एक दिन ये नूर भी,
सादगी एक कीमती असासा थी,जो।
आज उसकी कीमत जो हो गई ।
बिक रही है, सरेआम।
कहीं "यकी़न" से,
तो कहीं "फरेब" से
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