आजकल – डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"

अलीगढ़ :–


पता नहीं,

 कौन सा दिन आखिरी हो।

कौन सी रात आखिरी हो।

ना हकीब साथ जाएगा,

 ना कोई रकीब साथ जाएगा।

सुकून बस,

 तेरे आज में है।

बस यही पल,

 तेरी नजरों में ठहर जाएगा।

मनाले खुशियां अपने आज में।

कल यह कफन,

 भी यहीं छूट जाएगा।

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