अलीगढ़ :–
बैठकर शहर की,
ऊंची दीवार पर स्वर्णा।
इधर अहंकार और उधर शमशान को देखता हूं।
इधर से उधर जाने वालों की,
गिनती बढ़ती जा रही है।
मगर उधर से कोई इधर आता नहीं।
ये रूठने मनाने का दौर,
खत्म हो गया है।
एक सुनता नहीं,
दूसरा सुनाता नहीं।
इसी कशमकश में,
बीत रही हैं, जिंदगियां।
कभी कोई आता नहीं,
तो कभी कोई जाता नहीं।
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