साजिशों की सियासत – डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"

अलीगढ़ :–


 शिद्धतों की रियासत में,

साजिशों की सियासत,

चल रही थी।

हिदा़यतों की किताबों में,

लफ़्जों की हसरतें,

मुस्कुराकर

चल रही थीं।

ख्वा़हिशों की गलियों में,

फु़र्स़तें चल रही थीं।

गुंजाइशों के शहर में,

गुज़ारिशों की कहानी चल रही थी।

नुमाइशें यकीन की  लगी थी,

करामातों की गलियों में

आज़माइश ए कलम भी,

जोरों से चल रही थी।

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