इंसान को इंसान मिला नहीं – डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"

अलीगढ़ :–


लड़ता रहा ताउम्र,

कभी मंदिर कभी मीनार पर,

इंसान को इंसान मिला नहीं।

ना धरती ना आसमान पर।

खींचता रहा, पर्दों की रेखा।

सिलता रहा,

 कभी घुंघट कभी बुरखा।

इंसान को इंसान मिला नहीं,

ना धरती ना आसमान पर।

लड़ता रहा ताउम्र,

 कभी हिंदू कभी मुसलमान पर।

इंसान को इंसान मिला नहीं,

 ना धरती ना आसमान पर।

लड़ता रहा ताउम्र,

शमशान और कब्रिस्तान पर।

इंसान को इंसान मिला नहीं,

ना धरती ना आसमान पर।

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