अलीगढ़ :–
बरसों से,
शिकवों की खिड़की से,
लफ़्ज़ों की "धूप" खिलखिलातीं रही।
मौसम बदल गया, शहर का
खामोशियों की रफ्तार भी तेज रही,
अब खिड़की से कोई झांकता नहीं।
"धूप" जो नाम की थी, वह भी रही नहीं।
आसमान नया ढूंढ रहा था, परिन्दा,
हर दर आजादी तलाश रहा था, परिन्दा।
मौसम ने ज़रा रूख बदला,
परिन्दे ने भी अपना रूप बदला।
लेकर नये लफ्ज ए लिबास को,
चल दिया परिन्दा फिर नयी उडान को।
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